उत्तराखंड में मलिन बस्तियों को फिर मिली राहत, तीन साल के लिए बढ़ाया गया अध्यादेश का समय

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देहरादून (बिलाल अंसारी) :- उत्तराखंड में प्रस्तावित नगर निकाय चुनाव से पहले सरकार ने एक बार फिर मलिन बस्तियों को लेकर राहत दी है। शहरी विकास विभाग ने एक बार फिर उत्तराखंड नगर निकायों एवं प्राधिकरण हेतु विशेष प्रावधान संशोधन अध्यादेश 2021 में संशोधन किया है। ऐसे में बुधवार को सचिवालय में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में उत्तराखंड नगर निकायों एवं प्राधिकरण हेतु विशेष प्रावधान संशोधन अध्यादेश- 2024 के प्रख्यापन को मंजूरी मिल गई है. लिहाजा, आगामी विधानसभा सत्र के दौरान इस संशोधित अध्यादेश- 2024 को सदन के पटल पर रखा जाएगा।
वर्ष 2018 में नगर निकाय चुनाव से ठीक पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रदेश में मौजूद सभी मलिन बस्तियों को हटाने और बस्तियों में रह रहे लोगों को हटाकर कहीं और पुनर्वासित करने के निर्देश दिए थे। इस दौरान तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार आनन- फानन में एक अध्यादेश लेकर आई थी। जिसमें अध्यादेश का कार्यकाल 3 साल के लिए था। लेकिन इस दौरान मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर कोई भी पहल नहीं की गई और साल 2021 में अध्यादेश का कार्यकाल समाप्त हो गया। ऐसे में धामी सरकार ने साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए साल 2018 में जारी अध्यादेश में संशोधन कर कार्यकाल को 3 साल के लिए आगे बढ़ा दिया था। यानी 6 साल का समय बीत जाने के बाद भी मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर कोई भी निर्णय नहीं हो पाया और 23 अक्टूबर 2024 को अध्यादेश का कार्यकाल भी समाप्त हो गया।

उत्तराखंड में 582 मलिन बस्तियों में बसे लाखों परिवार सालों से स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं। हालांकि, ये सभी परिवार अवैध तरीके से नदी नालों के किनारे सालों से बसे हुए हैं, जिन्हें सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ भी मिल रहा है। यहां तक की इन्हें बिजली और पानी की सुविधा भी सरकारों की ओर से उपलब्ध कराई जा रही है, जिसकी एक मुख्य वजह यही है कि शुरू से ही राजनीतिक पार्टियां इन मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती रही हैं।
साल 2010 से 2011 के बीच शहरी विकास विभाग की ओर से किए गए सर्वे के अनुसार, मलिन बस्तियों में रह रहे 55 फीसदी लोगों के पास पक्का मकान था, जबकि 29 फीसदी लोगों के पास आधा पक्का मकान और 16 फीसदी लोगों के पास कच्चा आवास था। साथ ही 86 फीसदी घरों में बिजली कनेक्शन थे, लेकिन 582 बस्तियों में से केवल 71 मलिन बस्तियां ही सीवेज नेटवर्क से जुड़ी थीं।
इसके अलावा प्रदेश के इन सभी मलिन बस्तियों में कुल 252 आंगनबाड़ी और प्री स्कूल मौजूद थे। स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से 93 हेल्थ सेंटर भी मलिन बस्तियों में बने हुए थे। फिलहाल मलिन बस्तियों की प्रदेश में क्या मौजूदा स्थिति है। इसकी जानकारी मलिन बस्तियों के सर्वे के बाद ही पता चल पाएगा। हालांकि, शहरी विकास विभाग ने 13 साल बाद एक बार फिर मलिन बस्तियों का नए सिरे से सर्वे करने का निर्णय लिया है।
उत्तराखंड की नदियों को घेरे जाने के मामले को लेकर साल 2012 में एनजीटी ने सख्त रुख अपनाया था। साथ ही नैनीताल हाईकोर्ट ने नदियों के किनारे बनी 582 मलिन बस्तियों के अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे, जिसके चलते तात्कालिक कांग्रेस सरकार ने मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया था।
वहीं, नियमितीकरण को लेकर कोई प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई। ऐसे में साल 2016 में तात्कालिक कांग्रेस सरकार मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर अध्यादेश लेकर आई थी।साथ ही राजपुर विधानसभा सीट से तात्कालिक विधायक राजकुमार की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई, जो मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर काम कर रही थी। 2018 को तीन साल के लिए एक अध्यादेश जारी: साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सरकार बदली और भाजपा की सरकार बनने के बाद कांग्रेस सरकार का मलिन बस्तियों के नियमितीकरण का मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद साल 2018 में नगर निकाय चुनाव से ठीक पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इस बाबत आदेश दिए कि मलिन बस्तियों में रह रहे लोगों को वहां से हटाकर अन्य जगह पर पुनर्वासित किया जाए।
मलिन बस्तियों के विनियमितीकरण और मालिकाना हक दिलाने के लिए राजनेताओं की होड़ किसी से छुपी नहीं है। वर्ष 2017 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार भी इस हसरत के साथ विदा हो गई व मौजूदा भाजपा सरकार भी उसके ही नक्शे कदम पर चल रही है। चार वर्ष पहले भाजपा के सत्ता में आने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा भी बस्तियों के विनियमितीकरण का फैसला लिया गया था, लेकिन तकनीकी अड़चन में सरकार इसे आगे सरकाती रही।

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